Thursday, September 12, 2013

बिखर गया हूँ

बिखर गया हूँ
जर्रा जर्रा टूट गया हूँ
पूछ रहे हैं वो हमसे
क्या रूठ गया हूँ
मयखाने में महफ़िल
बड़ी रंगीली हैं
साकी को मालूम नहीं
"मैं" पैमाना छूट गया हूँ
बिखर गया हूँ
जर्रा जर्रा टूट गया हूँ
एक शहर वो भी था
तनहा तनहा
एक शहर ये भी हैं
लम्हा लम्हा
सिसक रही सांसे
क्या खोया क्या पाया
क्या मालुम
लगता हैं जैसे
"मैं" शायर लुट गया हूँ
बिखर गया हूँ
जर्रा जर्रा टूट गया हूँ