Tuesday, December 10, 2013

यूँही, वजह कोई नहीं

पास आने कि वजह कोई नहीं
साथ पाने कि वजह कोई नहीं
उदास हो जाती शामे , वजह कोई नहीं
यूँही मुस्कुराना, वजह कोई नहीं
इश्क़ होता हैं,  वजह कोई नहीं

मुझे काफिर ना समझ लेना अये हिन्दू मुसलमां
मेरा मजहब भी हैं , गोया मेरा खुद भी हैं
इश्क़ होता हैं मज़हब, कोई पाबन्दी नहीं
सबका होता हैं अपना, एक जिन्दा खुदा

किस उम्र में कम्बख्त फिर से इश्क़ हुआ
मयखाने जाए या बुतखाने , समझ नहीं आता

सोचता हूँ तुझको तो यक़ीं सा होता हैं
कि खुदा मेरे बारे में सोचता तो हैं
यूँ ही दरिया में नहीं लहरें उठती
इश्क़ होता हैं , खुदा होता तो हैं

Thursday, September 12, 2013

बिखर गया हूँ

बिखर गया हूँ
जर्रा जर्रा टूट गया हूँ
पूछ रहे हैं वो हमसे
क्या रूठ गया हूँ
मयखाने में महफ़िल
बड़ी रंगीली हैं
साकी को मालूम नहीं
"मैं" पैमाना छूट गया हूँ
बिखर गया हूँ
जर्रा जर्रा टूट गया हूँ
एक शहर वो भी था
तनहा तनहा
एक शहर ये भी हैं
लम्हा लम्हा
सिसक रही सांसे
क्या खोया क्या पाया
क्या मालुम
लगता हैं जैसे
"मैं" शायर लुट गया हूँ
बिखर गया हूँ
जर्रा जर्रा टूट गया हूँ 

Wednesday, November 11, 2009

समर्पण मैं का

चलो ढूंढते हैं
उस एक पल को
जहाँ से शुरू हुआ था विलय
हमारे मैं का
ना तो ये किसी व्यवसाय का विलयन हें
न किन्ही दो राष्ट्र का
हवा ने खुशबु को समेटा
या सुगंध समा गई सुरभि में
समर्पण मैं का था
जाने किस छोटे से पल की करामात हें ।
रब के सामने मैं खड़ा था
और खुशिया तुम्हारे लिए मांग रहा था।




Wednesday, June 10, 2009

आसमान पे उड़ना बहुत आसान हैं

आसमान पे उड़ना बहुत आसान हैं

बस पंख लगे हो तुम्हारी छाती पर
दोनों हाथो की जगह

अपनों का डैना हो

फिर देखो विपरीत हवाओ से

कितना आसान हैं लोहा लेना

आसमान पे उड़ना बहुत आसान हैं

मैं आज ही गिरा हूँ

उड़ते उड़ते

बस एक डैना बिखर गया

Monday, June 8, 2009

शून्य दोस्त mere

मैं शून्य हूँ

तुम भी शून्य हो जाओ

हम जुड़कर भी शून्य

और घटकर भी शून्य

और कोई अगर गुणा करे

तो भी सिफर शून्य

पर कोई बाँटना चाहे हमे

करना चाहे विभाजित

असंभव

हम एक दुसरे से अविभाज्य रहे

हमेशा हमेशा

Thursday, December 4, 2008

चंद कदम

जब भी कराहा था
तेरा मन
किसी जाने अनजाने कारण से
जब भी नम थी तेरी आँखे
मुझे अच्छी तरह से याद हैं
की मैंने सुनी थी तेरी आहट
मेरे दिल के चौखट तक
आई थी तुम
थर थर होठों से , पुकारा था तुमने मुझे
पता नही किस मजबूरी में
अब भी दूर तो हो
फासले भी हैं
बस चंद कदम
पर क्यूँ रह जाती हैं
सागर साहिल सी दूरी ये ?



भ्रम और नवजीवन

हकीकत से रूबरू हर रोज होता हूँ
वास्तविकता का बोध हमेशा कराया
जाता हैं

दुनिया के लिहाज से बड़ा इम-प्रैक्टिकल हूँ
दिमाग द्बारा समझाया जाता हूँ।
समझाते हैं लोग।
पर नासमझ दिमाग
नासमझ लोग

भ्रम भी रिश्ते गरमाए रखते हैं
रिश्तो की ठंडी लाश
सिहरन देती हैं
और उष्ण रिश्तो का अभाष
नया जीवन

भ्रम और नवजीवन
मेरी एक नई कल्पना हैं
और वो रिश्ता
मेरी नई कविता