Tuesday, December 10, 2013

यूँही, वजह कोई नहीं

पास आने कि वजह कोई नहीं
साथ पाने कि वजह कोई नहीं
उदास हो जाती शामे , वजह कोई नहीं
यूँही मुस्कुराना, वजह कोई नहीं
इश्क़ होता हैं,  वजह कोई नहीं

मुझे काफिर ना समझ लेना अये हिन्दू मुसलमां
मेरा मजहब भी हैं , गोया मेरा खुद भी हैं
इश्क़ होता हैं मज़हब, कोई पाबन्दी नहीं
सबका होता हैं अपना, एक जिन्दा खुदा

किस उम्र में कम्बख्त फिर से इश्क़ हुआ
मयखाने जाए या बुतखाने , समझ नहीं आता

सोचता हूँ तुझको तो यक़ीं सा होता हैं
कि खुदा मेरे बारे में सोचता तो हैं
यूँ ही दरिया में नहीं लहरें उठती
इश्क़ होता हैं , खुदा होता तो हैं