Thursday, December 4, 2008

परख लो mujhe

एक सोच फ़िर से देता हूँ तुम्हे

वक्त लेना

ख़ुद को बिल्कुल एकाकी कर लेना

सोच में।

फ़िर देखना क्या कहीं मैं दीखता हूँ ?

जो रिश्ते हैं आस पास

नए पुराने

आम और khas

सभी से dur कर लेना

ख़ुद को कुछ pal के लिए

kyaa मैं दूर baitha
कहीं tumhara अपना लगता हूँ ?


याद करना मेरे मिलने के बाद के

दर्द bhare lamhe

kyaa wahan main कहीं साथ दिखता हूँ?



कितने ही नाम wale rishte हैं

कितने ही anjaan से रिश्ते हैं
kyaa किसी parakh me मैं teekta हूँ

मेरे हर सवाल का जवाब अगर हो ना
कितना अच्छा हैं
मान ही जाना सच्चा दोस्त हूँ मैं

हर सवाल का जो जवाब हो हाँ
to मुझे एकाकी कर देना
और देना थोड़ा सा साथ
चाहे अजनबी हमसफ़र की तरह।

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