एक सोच फ़िर से देता हूँ तुम्हे
वक्त लेना
ख़ुद को बिल्कुल एकाकी कर लेना
सोच में।
फ़िर देखना क्या कहीं मैं दीखता हूँ ?
जो रिश्ते हैं आस पास
नए पुराने
आम और khas
सभी से dur कर लेना
ख़ुद को कुछ pal के लिए
kyaa मैं दूर baitha
कहीं tumhara अपना लगता हूँ ?
याद करना मेरे मिलने के बाद के
दर्द bhare lamhe
kyaa wahan main कहीं साथ दिखता हूँ?
कितने ही नाम wale rishte हैं
कितने ही anjaan से रिश्ते हैं
kyaa किसी parakh me मैं teekta हूँ
मेरे हर सवाल का जवाब अगर हो ना
कितना अच्छा हैं
मान ही जाना सच्चा दोस्त हूँ मैं
हर सवाल का जो जवाब हो हाँ
to मुझे एकाकी कर देना
और देना थोड़ा सा साथ
चाहे अजनबी हमसफ़र की तरह।
Thursday, December 4, 2008
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